अभी इस ब्‍लॉग में कविता लता (काव्‍य संग्रह)प्रकाशित है, हम धीरे धीरे शील जी की अन्‍य रचनायें यहॉं प्रस्‍तुत करने का प्रयास करेंगें.

अधिकार

पल भर खिल कर मुरझाना है
बस इतना अधिकार हमें दो।
एक पाव मदिरा को कारण
ग्रास हमारा, हास हमारा
छीन रहे हो ओ बेदर्दी !
यह कैसा है प्यार तुम्हारा।
सन्तति होकर जन्म लिया है
क्या कोई अपराध किया है ?
जग में कुछ सुगंध फैला दें
बस इतना अधिकार हमें दो
जीने का अधिकार हमें दो।
हमसे से कोई गांधी है,
कोई नेहरू है, सुभाष है
रानी दुर्गा, लक्ष्मी बाई
की हममें सो रही आश है।
सदियों के इस स्वर्ग-देश को
हाय ! नर्क क्यों बना रहे हो ?
हंसकर जग के आंसू पोंछे
थोड़ा सा आधार हमें दो।
जीने का आधार हमें दो
बस इतना अधिकार हमें दो।

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