अर्पण
गंध मधुर रस रूप समन्वित फूल धूल है,
शूल बहुत आचूल डाल है और भूल है।
सही, किन्तु विभु का रूपायित विमल हास है,
इसमें निज गुण-दोष बताना बड़ी भूल है।
वन्दना
मॉं हृदि-शत-दल पर करो बास।
कर धृत सित-सरसिज विमल वास,
पद नुपुर रून-रिन अमल हास,
वर दे ! दे भाषा भव्य भाव।
कर दे जड़ता तम तोम नाश।
टूटे संसृति का मोह पाश।
‘शेषनाथ शर्मा शील’
गंध मधुर रस रूप समन्वित फूल धूल है,
शूल बहुत आचूल डाल है और भूल है।
सही, किन्तु विभु का रूपायित विमल हास है,
इसमें निज गुण-दोष बताना बड़ी भूल है।
वन्दना
मॉं हृदि-शत-दल पर करो बास।
कर धृत सित-सरसिज विमल वास,
पद नुपुर रून-रिन अमल हास,
वर दे ! दे भाषा भव्य भाव।
कर दे जड़ता तम तोम नाश।
टूटे संसृति का मोह पाश।
‘शेषनाथ शर्मा शील’
No comments:
Post a Comment