अभी इस ब्‍लॉग में कविता लता (काव्‍य संग्रह)प्रकाशित है, हम धीरे धीरे शील जी की अन्‍य रचनायें यहॉं प्रस्‍तुत करने का प्रयास करेंगें.

सांप नही - भाई है

काटा है सांप ने, फिर उसे क्षमा करो
क्योंकि यह परम्परा पुरानी है।
सांप तो विवेक शून्य, क्षुद्र कीट मात्र है
दंशन का अपना स्वभाव नहीं छोड़ेगा।
किन्तु तुम मनुष्य हो, वह भी भारतीय
अपने आदर्शों पर मरा करो,
मिटा करो, जो हो परिवार का
पृथ्वीराज ने था गोरी को क्षमा किया।
एक नहीं, बीस बार।
भूल थी शिवाजी की
मैत्री के आलिगंन पाश में बंधे, बंधे
अफजल की क्षुरिका से
किन्तु वह मरा नहीं
ऐसा तुम मत करो
फिर उसे क्षमा करो।
भाई था यह कभी
हिस्से में राज्य दिया, कोष दिया
सेना दी
आज वहीं सांप है
बंधु है कि सांप है ?
लहराता लपक रहा पैरों की ओर है
फन रखकर पैर पर
क्षमादान मांगेगा ? कि पुर्नबार काटेगा ?
चाहे, विष चढ़ जाये
किसी ताशकंद के
नये चिकित्सालय में
आन-मान बेच लेना
सांप नहीं भाई है।
फिर उसे क्षमा करो।

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