अभी इस ब्‍लॉग में कविता लता (काव्‍य संग्रह)प्रकाशित है, हम धीरे धीरे शील जी की अन्‍य रचनायें यहॉं प्रस्‍तुत करने का प्रयास करेंगें.

पीर पीकर मुसकुरा

अंतर कहता है, एक गीत कवि गा दे
जी के घावों पर, शीतल-लेप लगा दे।
विरहिन के आंगन में सावन मत छाये
छन्दित होकर वह उतर कलम से आये।
संयोगी गाये और वियोगी गाये
मरू में भी तेरा गीत सुधा बरसाये।
उठ ! र्स्वण और अपवर्ग धरापर ला दे
अंतर कहता है एक गीत कवि गा दे।
दिन भर पिस कर भी रहा रात भर सूखा
तेरे गीतों से बल पाये वह भूखा।
वेदना, घृणा, अपमान-मात्र संबल है
दुख से विरक्ति क्यों ? दुःख में अनुपम बल है।
आंसू से विगलित की चोटें सहला दे,
अंतर कहता है एक गीत कवि गा दे।
रोकर विद्रोही हृदय नहीं गलता है
आंसू से भीगा प्राण अधिक जलता है।
मत भड़के उर की आग, बांध बाहों से
मत धूमावृत जग हो, पगली आहों से।
अग-जग की पीकर पीर तनिक मुसका दे
अंतर कहता है एक गीत कवि गा दे।

16-6-75 को आकाशवाणी रायपुर से प्रसारण

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