अभी इस ब्‍लॉग में कविता लता (काव्‍य संग्रह)प्रकाशित है, हम धीरे धीरे शील जी की अन्‍य रचनायें यहॉं प्रस्‍तुत करने का प्रयास करेंगें.

जड़ का अधिकार

अंतर के गीत बहुत उतरे, उतरेंगे,,
पर उनको जीवन प्राण तुम्हीं देते हो।
अपने आंगन में घनीभूत पीड़ा में,
जीने मरने की इहलौकिक क्रीड़ा में,
उठने का श्रम जब भी उपहास्य हुआ है,
तब जीवन को गति, सदय ! तुम्हीं देते हो।
फिर उसमें नूतन प्राण तुम्हीं देते हो।
असहाय-हीन जब भी निज को पाता हूँ ,
जब कभी मरण से, दुःख से, दुःख पाता हूँ ,
 तब उसमें अपनी अमृत-मयी सत्ता का,
हॉं-मुसका कर आभास तुम्हीं देते हो।
फिर बहते को आधार तुम्हीं देते हो।
तुमसे वियुक्त बन जब भी निज को पाया,
देखा-जैसे है प्राण-हीन यह काया।
दुःख ही तप है, तपहित मानव जीवन है,
जीवन को निज में विलय तुम्हीं देते हो,
सादी चादर को रंग तुम्हीं देते हो।
वह आत्म प्राप्ति-वह मुक्ति मुझे मत देना,
प्रिय का बंधन, प्रिय है-वह ही है लेना।
इस बंधन में आंसू ने गीत लिखे हैं,
इनको कविता का मान तुम्हीं देते हो,
लघु को महान् सम्मान तुम्हीं देते हो।
आहें कागज भर भरता हूँ , भरने दो,
मत पोछों, आंसू झरते हैं झरने दो।
मेरे आकुल स्वर ने रोना ही जाना,
दृग-जाल को मुक्ता रूप तुम्हीं देते हो,
मरू के ऊर को सर धार तुम्हीं देते हो।
तुम मुसकाते हो तभी फूल खिलता है,
तुम छू देते हो तभी अनिल हिलता है।
उन्मन वीणा लेकर बैठा रहता हूँ ,
आकुल तारों को छेड़ तुम्हीं देते हो,
इस पीड़ा में अनुराग तुम्हीं देते हो।
भीतर बाहर सुख दुःख में इससे खेलो,
फिर से मुसका दो और खिलौना ले लो।
माटी का है पर प्यार तुम्हें करता है,
जड़ को भी यह अधिकार तुम्हीं देते हो,
फिर उसमें चेतन प्राण तुम्हीं देते हो।

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