अभी इस ब्‍लॉग में कविता लता (काव्‍य संग्रह)प्रकाशित है, हम धीरे धीरे शील जी की अन्‍य रचनायें यहॉं प्रस्‍तुत करने का प्रयास करेंगें.

रक्त पात

स्वप्न-विलासी कवि हूँ
तुम्हारे किसी उपयोग का नहीं।
चूहों की नाजायज हरकतें
आंख नहीं लगने देती।
रात में कुछ चूहे लड़ने लगे
गोरी-सी बिल्ली ने आकर कहा
‘‘छिः तुम भी लड़ते हो ?’’
गांधी के उन लकड़ी की खटमल से भरी
टूटी सी कुर्सी के लिये
व्यथ्र लड़ते हैं।
ठाकुर के बंग का अंग अंगसिहर रहा
गौतम के गेह में रक्तिम वसंत है।
सूर और तुलसी का रूधिर सना आंगन है
जिन मुनि के प्रांगण में फूल खिले खून के।
बिल्ली ने रात भर
शांति की सुरक्षा की
प्राप्त हुआ,
वह डकारती हुई चली गई।
जागो ! तुम देखो
घर का सब काम काज।
स्वप्न विलासी कवि हूँ
नहीं किसी काम का।
सपने ही देखूंगा
नित्य-नित्य तुम सबके
सुख के, सुहाग के।

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