अभी इस ब्‍लॉग में कविता लता (काव्‍य संग्रह)प्रकाशित है, हम धीरे धीरे शील जी की अन्‍य रचनायें यहॉं प्रस्‍तुत करने का प्रयास करेंगें.

शरद पूणिमा

भारत पाकिस्तान युद्ध की विभीषिका में पति को भेज चुकी प्रोषित पति का की मर्म कथा

पूनम तिथि शरद मास।
पश्चिम से आ रही, किसी की यह सर्द सांस
बावली उतावली सी खोज रही है किसको,
कोई संदेश तथा कारण विशेष है।
असमय जो छेड़ा है चंदा से हुई भूल
और स्यात् कहीं पास पारिजात रहा झूल।
जुही की, चमेली की, आती है मदिर गंध
तभी हाय ! धीरज का छूट रहा छन्द बंद।
क्योंकि आज तिथि पूनम
मधुर मदिर शरद मास।
वे पिछले रम्य हास
स्मृति के शत-शतार्वत
मंथित उर अंतर है
राधे ! तुम हो कहॉं ?
कहती प्रत्येक सांस
आओ फिर रचें रास।
तिथि पूनम शरद मास।
यही भाव बाधा है
दूर कहीं राधा है।
बोलो कब हुई भिन्न
भारतीय नारी है
पराशक्ति अवच्छिन्न।
चेतना तुम्हारी है, प्रेरण तुम्हारी है
आल्हादिनी है कभी, और कभी वीरता,
योगी की सिद्धि तथा भोगी की है समृद्धि
रागी की रति तथा विरागी की विरति है।
अतः साथ है सतत्
करके इस सत्य का अतिक्रम, दुख पाते हो,
स्मृति की परिधि से तुम
मेरे अस्तित्व को
यूं ही निर्वासित क्यों करते हो मेरे श्याम !
भूलो मत अमृत पुत्र, महाप्राण, पूर्णकाम !
मेरे गर्व !
अंबर की नीलिमा समान सदा
मैंने ढांप रखा है, तव तन-मन सीमा को
मेरा सिंदूर और मेरी ये चूड़िया
भारतीय नारी के बल का प्रतीक है।
मै। वारी, माता का दूध मत लजाना प्राण !
अपने दृग जल से मैं आज पुण्य पर्व पर
कलुष तुम्हारे अभ्यंतर का धो रही।
इस राधा के श्याम को प्रणाम।
जीत कर आओ
तब अपनी प्रत्येक सांस
होगी फिर, रम्य रास
तिथि पूनम शरद मास।

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