स्व. पण्डित शेषनाथ शर्मा ‘शील’ के अप्रकाशित काव्य भण्डार से कुछ मोती चुनने की सोची थी. . . . प्रसाद भंग हुआ, मुक्ता चयन सहज नहीं हैं किसी चुनू - किसे छोडूं ? शील जी की विविध भावधारा और बहुरंगी कल्पना और अनुभूमि को संजोने के साथ-साथ यथसाध्य छायावादी रचनाओं के संग ही प्रगतिवादी रचनाओं को भी संकलित करने का प्रयास की हूँ । मेरा यह प्रयास कितना सार्थक है इसकर उत्तर सुधि पाठकों से पूछिये, इतना अवश्य कहूंगी कि संकलन में कोई त्रुटि रह गई हो तो स्व. शील जी के साथ ही आप सबसे भी क्षमा मांगती हूँ।
भूमिका लिखने का गुरूतर कार्य डॉ. पालेश्वर शर्मा जी ने स्वीकार कर मुझे कृतार्थ है, वे प्रणम्य है।
शुभम्
सरला शर्मा
सात बी. एन. पी. ए. सेक्टर-9, भिलाई
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