अभी इस ब्‍लॉग में कविता लता (काव्‍य संग्रह)प्रकाशित है, हम धीरे धीरे शील जी की अन्‍य रचनायें यहॉं प्रस्‍तुत करने का प्रयास करेंगें.

आनंद

आज भोर गुमसुम है और मन उदास है।
सोती किलकारी है, सोती है लोरियां,
पनघट-पथ सोता है, सोती हैं गोरियॉं।
सोते चौपालों में सो रही कहानियां
जागी अनुभूमि और कल्पना कुमारियां।
उपवासे अन्तर की असमय यह प्यास है।
और मन उदास है. . . .
देखा आकाश दीप नभ में है झूलता।
कितना तम हरता है, फिर भी है फूलता।
देव दर्शनार्थ चला, बंद किन्तु द्वार है,
देव-दीप ने कहा कि जलना ही सार है।
जलता जीवन जागे व्यर्थ अन्य आस है।
और मन उदास है. . . .
लक्ष्यहीन एक दीप, पला किसी प्यार में,
बहता आया समीप, सरिता की धार में।
वह असीम सुप्त सिंधु, यह विराट है अमा,
लघु प्रदीप कर रहा, अनंत की परिक्रमा।
अर्थहीन, मतिविहीन, दीप का प्रयास है।
और मन उदास है. . . .
घर जला तमाशबीन गीत मांगते रहे
गीत से न कुछ मिला अभाव नाचते रहे।
भूख बिलबिला रही, सिसक रहा दुलार है
अर्थ के अभाव में, अपूर्ण आज प्यार है।
बंद मंद हास, बंद लोल भ्रू विलास है
और मन उदास है. . . .
गीत से कभी गुलाब की कली नहीं खिली
दीप के प्रयास को सराहना नहीं मिली।
क्या हुआ ? परन्तु दीप जलते हैं आज भी
गाये जा गीतकार ! मत निराश हो कभी।
भूल मत कि तेरा आनंद बहुत पास है
और मन उदास है।
आज भोर गुमसुम है और मन उदास है।

आकाशवाणी रायपुर से प्रसारित जून 1969 में।

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