अभी इस ब्‍लॉग में कविता लता (काव्‍य संग्रह)प्रकाशित है, हम धीरे धीरे शील जी की अन्‍य रचनायें यहॉं प्रस्‍तुत करने का प्रयास करेंगें.

पत्थर के भगवान बोल

यह गोपन हिंसा कपट पाश
कमजोरों का होता विनाश।
तेरे जग का क्यों करें नाश
प्रतिकार-हीन बलवान ! बोल. . .
ये धरणी ध्वंसक भयद दान
जो महाप्रलय है मूर्तिमान।
जीवित जग को करते श्मशान
तेरे सिर पर भी रहे डोल. . .
है अस्थिर जग, सागर का जल
सरिता, समीर, रवि शशि भी चल।
तू ही क्यों बैठी है निश्चल ?
निष्क्रिय समाधि कर भंग बोल।
लगता तो है नर के समान
नर सदृश नयन, भुख, आंख, कान।
अब दे निज नरता का प्रमाण
तेरी जड़ता का पिटा ढ़ोल. . . ।
क्यों चेतन से जड़ हुये आप ?
फिर किस वृन्दा ने दिया शाप।
निश्चय ही होगा महापाप
कुछ तो अपना इतिहास बोल. . . ।
युग-युग में जिसके कई दूत
गा गये दया के गीत पूत।
वह दयाहीन पाषाण भूत
तू ही है या है अपर बोल. . . ?
ओ पत्थर के भगवान बोल. . . ।

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