अभी इस ब्‍लॉग में कविता लता (काव्‍य संग्रह)प्रकाशित है, हम धीरे धीरे शील जी की अन्‍य रचनायें यहॉं प्रस्‍तुत करने का प्रयास करेंगें.

प्यार के देश में. . .

वहीं छंद है, वही मधुर स्वर, मादक वही हिलोर है
सुन पुकार, मैं चला रात भर, होने आई भोर है।
किन्तु प्राण ! मैं ठगा गया या यही प्रीत की रीत है
बुला लिया, फिर कहीं छिप गये यह भी कोई नीति है।
गंध, रूप, रस, हास, तुम्हारा अभी शेष है फूल में
यहीं कहीं हो खोज रहा हूँ  निर्मम पद-छवि धूल में।
सुरभित सांस तुम्हारी रह रह पुलकित करती देह को
अस्फुट मर्मर चरण चाप सुन मोह हो रहा मोह को।
नील गगन सित-घन छाया तल श्री हत राशि उडू जाल में
कहां मिलेगा ? कोई कह दे, अरूण उदय गिरि भाल में।
करूण नयन-युग तृषित अतल उर,उर की क्वांरी कामना,
मचल रहे हैं सभी हाय रे ! पड़ा लाज से सामना।
सदानंदमय उसको माना, हन्त ! यही तो भूल की
झरे ओस बन किसके आंसू-पंखुरियों पर फूल की।
वह ही, वन के मर्मर स्वर में, रोता बारंबार है।
सपना जहॉं टूट जाता है, इस असार संसार में
आदि अंत समवेत जहॉं है, वही देश है प्यार का।
वहीं कहीं सूने में साथी, किसी पेड़ की छांह में
एक बार सिर रखकर रो लूँ , सदय ! तुम्हारी बांह में।

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