अभी इस ब्‍लॉग में कविता लता (काव्‍य संग्रह)प्रकाशित है, हम धीरे धीरे शील जी की अन्‍य रचनायें यहॉं प्रस्‍तुत करने का प्रयास करेंगें.

दो घन

नील नभ के कोण में
यों आ गये घन।
मिलन आतुर, प्राण कातर
मंद कम्पित कर-चरण-उर।
स्पर्श पुलकित
लाज विजड़ित
कण्टकित तन ! आ गये धन।
पूर्व परिचित
चिर अपरिचित
कौन जाने ? प्रीति संचित
दे दिया कुछ
ले लिया कुछ
या कि वैसे ही गया उनका
मधुर क्षण। मिल गये धन।
अपर ही क्षण
तड़ित घर्षण
गिर गये कुछ अश्रु के कण,
सान्ध्य बेला
मैं अकेला
गा रहा हूँ गीत गीला
प्राण उन्मन ! आ गये धन।
मधुर आशा
कटु निराशा
चन्द्र छूने की दुराशा
देखता हूँ
सोचता हूँ
फंस गया है क्यों वितृष्णा
पाश में मन। छा गये धन।
तृषित यौवन
क्षुधित जीवन
जल गया पल्लवित उपवन
हृदय खेदित
मन बेधित
तप्त सांसों के अरे इतिहास
मत बन। आ गये घन।
प्रथम बादल
क्यों दिया चल ?
अपर का तन क्यों गया गल ?
एक निःस्वन
एक तन-मन
या कि उनका यही शाश्वत
मिलन क्षण ? मिल गये धन।
नील नभ के कोण से दो आ गये धन।

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