अभी इस ब्‍लॉग में कविता लता (काव्‍य संग्रह)प्रकाशित है, हम धीरे धीरे शील जी की अन्‍य रचनायें यहॉं प्रस्‍तुत करने का प्रयास करेंगें.

अधूरा गीत

साथी आंसू मत बहने दो
गीत अधूरा ही रहने दो।
घन का गहन-गीत गुरू गर्जन
आज प्रकम्पित जग का कण कण।
धूल उड़ाता उठा प्रभंजन
ऐसे में लिखना रहने दो।
नभ से झरे अश्रु के कुछ कण
जग की व्यथा, यहॉं का क्रन्दन।
क्यों लेते हैं छीन गगन घन
अरे ! हमारा दुःख रहने दो. . .
यही नाम तो है अपना धन
नभ वालों का मत तरसे मन।
जो कल्प्ति असत्य है चिंतन
उसमें ही कवि को रहने दो. . .
निखिल विनश्वरता के अंदर
रूप अचिर में है चिर सुन्‍दरं।
छूतें उसे कल्पना के कर
कवि को इस रस में बहने दो. . . .
कलाकार वास्तव जीवन से
भिन्न हो गया है जन-गन से।
सच होगा पर उसके मन से
निस्सृत सुधाधार बहने दो. . .
जो अपूर्ण जग में आया है,
वह अपूर्ण है, दुख पाता है।
पूर्ण, पूर्ण में मिल जाता है
मुझे अधूरा ही रहने दो. . .
किसी पूर्ण में कहॉं प्यास है
हर अपूर्ण में छिपी आश है।
कला साधना है, प्रयास है
कवि को तप में रत रहने दो. . .
गीत अधूरा ही रहने दो
साथी आंसू मत बहने दो. . .

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