अभी इस ब्‍लॉग में कविता लता (काव्‍य संग्रह)प्रकाशित है, हम धीरे धीरे शील जी की अन्‍य रचनायें यहॉं प्रस्‍तुत करने का प्रयास करेंगें.

बहेलिये का बंदी

अब मत मुझे बुलाना साथी
अब मत मुझे बुलाना।
यह मादक स्वर आवाहन का
व्याकुल कर देता है।
पंख बंधे हैं, और मन मेरा
टूक-टूक होता है।
कैसे हो उड़ जाना साथी,
अब तम मुझे बुलाना।
मिलना कैसा ?
अब तो नभ में गीत मिलेंगे अपने
एकाकी विनिंद्र रजनी में
तुम बन आना सपने।
खोने में है पाना साथी !
अब मत मुझे बुलाना. . .
क्योंकर खले किसी को अपना
मिलना, आना-जाना।
दूर क्षितिज के पार नीड़ में
चोंच मिलना, गाना
तुम इस ओर न आना साथी !
अब मत मुझे बुलाना. . .
पर की खुशियों पर निर्भर है
 सब कुछ तेरा-मेरा
दूर बसेरा तेरा।
आंसू में सुख पाना साथी !
अब मत मुझे बुलाना. . . 

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