अभी इस ब्‍लॉग में कविता लता (काव्‍य संग्रह)प्रकाशित है, हम धीरे धीरे शील जी की अन्‍य रचनायें यहॉं प्रस्‍तुत करने का प्रयास करेंगें.

पहिचान

जान तुम्हें प्रिय लूंगा।
तुम उषा के अरूण किरण के
रथ पर चढ़कर आना,
या सरसी के फेनिल-उर पर
स्वर्ण-तरी में गाना।
हे अरूप ! तव रूप विकीरित
होगा, जग में शतधा
किसी रूप से गीतों के मिस
मन की सब कह लूंगा
जान तुम्हें प्रिय लूंगा।
रूद्र-तपन से झरे अनल
या पागल पावस गाये,
वृन्त-च्युत शिऊली-वलयों पर
शिशिर प्रात रो जाये।
कुसुम कामिनी के सुरभित
मंद स्मित के ऋतुपति हो।
कब तक कर से चन्द्र छिपेगा ?
खोज तुम्हें प्रिय लूंगा
पहचान तुम्हें प्रिय लूंगा।
अलस प्रात का खग-कुल कलरव
अरूण-किरण मतवाली
संध्यारूण सरिता जल चंचल
विरह निशा हो काली
सब में देखे रूप तुम्हारे
ओ सपनों की रानी
चिर परिचित से हाय ! अपरिचित
कब तक और रहूंगा
जान तुम्हें प्रिय लूंगा।

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