घन गरजता रहा, मन तरसता रहा
और भादों बरसता रहा राम भर।
अश्क छप्पर के नयनों से टपकाक किये
मेरा हमदर्द रोता रहा रात भर।
दर्द ने नयन की रोशनी छीन ली
फूल बनकर नुमाया हुआ सब सही।
कौन था जो संजोता सजाता इन्हें
फूल खिल खिल के झरते रहे रात भर।
इश्क में दर्द होता है सबको मगर
रूप पर कीट सा कोई जलता नहीं।
हाय ! उठ बेरहम यूं जला मत मुझे,
दीप सिर धुन के रोता रहा रात भर।
गाहे तरहाईयां, गाहे परछाईयां
सांस पहरे पर है, जिन्दगी जेल है।
याद धुनता रहा, गीत बुनता रहा
आतिशे,गम में भुनता रहा रात भर।
और भादों बरसता रहा राम भर।
अश्क छप्पर के नयनों से टपकाक किये
मेरा हमदर्द रोता रहा रात भर।
दर्द ने नयन की रोशनी छीन ली
फूल बनकर नुमाया हुआ सब सही।
कौन था जो संजोता सजाता इन्हें
फूल खिल खिल के झरते रहे रात भर।
इश्क में दर्द होता है सबको मगर
रूप पर कीट सा कोई जलता नहीं।
हाय ! उठ बेरहम यूं जला मत मुझे,
दीप सिर धुन के रोता रहा रात भर।
गाहे तरहाईयां, गाहे परछाईयां
सांस पहरे पर है, जिन्दगी जेल है।
याद धुनता रहा, गीत बुनता रहा
आतिशे,गम में भुनता रहा रात भर।
No comments:
Post a Comment