जब नयन मिले,
मन मिले,
मूक थी भाषा
जागी युग-युग की सुप्त कुमारी आशा।
पल में आलापन सुना,
निवेदन अपना,
उर ने उर से कर दिया,
हो यथा सपना।
प्रिय ! क्या कोई भी
इसको समझ न पाया
शशि को घूंघट में,
छिपना कैसे आया।
व्रीड़ा का चिकना हास
कमल पर छाया
यह थी
तन्वी पर
प्रथम अजानी माया।
मन मिले,
मूक थी भाषा
जागी युग-युग की सुप्त कुमारी आशा।
पल में आलापन सुना,
निवेदन अपना,
उर ने उर से कर दिया,
हो यथा सपना।
प्रिय ! क्या कोई भी
इसको समझ न पाया
शशि को घूंघट में,
छिपना कैसे आया।
व्रीड़ा का चिकना हास
कमल पर छाया
यह थी
तन्वी पर
प्रथम अजानी माया।
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